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सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

क्या अब किसानों की हालत सुधर पाएगी राजनीतिक ताकत बनते किसान क्या अपना हक लेते नजर आएंगी सवाल कई है मगर सरकार के एक है

हाल की दो कल्याणकारी सरकारी घोषणाओं पर ध्यान केंद्र की मोदी सरकार ने 1 साल बाद होने वाली आम चुनाव से पहले अंतिम पूर्ण बजट में किसानों को उनकी उपज के लागत मूल्य का 50% लाभ देने का ऐलान किया साथ ही 100000000 गरीब परिवारों को ₹500000 तक स्वास्थ्य बीमा देने का भी ऐलान किया जाहिर है कि अधिकांश गरीब चाहे वह किसान या मजदूर हो या उद्योगिक श्रमिक उनके गांव में ही है बिहारी बिहार में आम तौर पर उनके ही हित में रहेगा इसके 1 हफ्ते के भीतर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को आप ₹200000 तक का कर्ज माफ करने का ही नहीं बल्कि गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी भी ₹2000 प्रति कुंटल करने और साथ ही जिन किसानों ने इसमें कम मूल्य पर बेचा है उन्हें भी बकाया राशि देने का ऐलान किया इस घोषणा के कुछ ही घंटों बाद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दिए किसानों का ₹50000 तक का कर्ज माफ करने की घोषणा कि इन दोनों ही राज्यों में जल्द ही चुनाव होने हैं जहां किसानों का आक्रोश सुर्खियों में है हानियां उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को मिली शिकस्त इसकी बानगी भी है गुजरात विधानसभा चुनाव में भी इसके संकेत मिले अपने सबसे मजबूत किले में भी भाग पर किसी तरह बस मेहनत के नजदीक ही पहुंच पाई राज्य की कुल 35 जिलों में से 15 को ग्रामीणों द्वारा माना जाता है वहां 7 जिलों में पार्टी का खाता भी नहीं खुला तो 8 जिलों में 15116 अपने नाम करता कि देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा और सहयोगी दलों की सरकार तो किसानों के सामने भी कई कोई सुविधा नहीं है कि उन्हें अपनी नाराजगी और किसके सामने व्यक्त करनी चाहिए देश की 68 साल की पहली बार किसान एक दबाव समूह के रूप में उभरा है अभी तक मंचों से किसान भाइयों का का नेता अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लिया करते थे इस राजनीतिक उत्थान का नतीजा हुआ कि पिछले 25 साल से लगातार हर 36 मिनट पर एक किसान आत्महत्या करता रहा है और इस अवधि में हर रोज 2052 किसान खेती छोड़ दे रहे इस बीच कोई किसान दबाव समूह नहीं बना पाया अगर कभी कोशिश हुई भी तू आजा समूह में ही बांट दिया गया और राजनीतिक दल उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने की जगह उन्हें और उनके बच्चों को आरक्षण दिलाने के शब्द भाग दिखा कर वोट लेने लगे समाज बढ़ता गया और राजनीतिक दल सत्ता सुख भोगता गया एक उदाहरण देखें वर्ष 2014 आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में कहा गया था कि ऐसे कदम उठाए जाएंगे जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ है और यह सुनिश्चित किया जाएगा की लागत का 50% लाभ हो लेकिन कुछ ही महीने बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 20 फरवरी 2015 को अपने हलफनामे में यह कह दिया कि किसानों को की लागत का 50% अधिक देना संभव नहीं है क्योंकि बाजार में इसका दुष्प्रभाव नजर आएगा इसी बीच 2017 में नई सरकार की अद्भुत दिखाते हुए किसानों ने खूब मेहनत की ज्यादा खेती कर रिकॉर्ड 27.6 करो उत्पादन किया लेकिन जहां पिछले 2 साल से इंदौर उठा रहे तो इस साल कीमती जमीन से ऊपर नहीं उठी नतीजन किसान का बहुत सारी सीमाएं पार कर गया तब तक किसान यह समझने लगा है कि आलू चाहे किसी भी किसान करो यदि उसकी लागत ₹5 प्रति किलो है और फसल तैयार होने पर मंडी ने उसे ₹2 या ₹4 का भाव मिल रहा है तो वह साफ तौर पर समझ रहा है कि उसका शोषण को ऊंची जाति का जमीदार नहीं बल्कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता ही कर रहे हैं भले ही वह किसी भी राजनीतिक दल का क्यों ना हो उसी ने उसे ना तो किसी मुलायम और ना ही किसी मायावती ने मध्य प्रदेश के गांव महाराष्ट्र किसान का भी नहीं हुआ इसी तरह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में किसान सड़कों पर बैठने को मजबूर हो गए गुजरात चुनाव के बाद मोदी सरकार भी यह समझ गई कि अब परंपरागत तरीके से राजनीति नहीं हो सकती क्योंकि किसानों की मौजूद मौजूद नाराजगी और आंदोलन के पीछे पहली बार ना तो कोई राजनीतिक दल है और ना ही कोई नेता यशोदा इस फोर्थ है और यही कारण है कि पूरे देश की सरकारें आज इस बात पर नजर रख रही हैं कि किसान का ऊपर का अधिकाधिक मोहाली गोस्वामी ना सिमट कर रहा है बल्कि आंगन में भी ला राजा उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने गेहूं खरीद में अखिलेश सरकार के आंगनबाड़ी के मुकाबले खरीदारी का लक्ष्य रखा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह प्रयास अच्छा था लेकिन कुछ महीने बाद आलू की खेती प्रधानमंत्री मोदी इस बार यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वह पूरी तरह मुकम्मल और यही वजह है कि हाल में हुए प्रदेश के खाद्य सचिवों की बैठक बैठक में गेहूं खरीद तो पिछले साल के 3.3 से बढ़ाकर 3.2 कर दिया गया लेकिन हिदायत यह है कि यह लक्ष्य पूरा होना चाहिए वह भी बिना किसी हीला-हवाली और भ्रष्टाचार के

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