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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

Bhopal gas tragedy incident, भोपाल गैस त्रासदी घटना की पूरी जानकारी, कैसे हुई, कब हुई,

नई दिल्ली भोपाल की गैस त्रासदी पूरे भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का भी सबसे बड़ा औद्दोगिक सबसे दुर्घटना है, बात 3 दिसबंर 1984 की है, जब आधी रात के बाद यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगो की जान ले ली थी। शहर के ठीक बाहर बने यूनियन कार्बाइड के कारखाने में तब रात के ठीक 12:00 बजे थे तभी कारखाने से अचानक काले रंग का एक गुवार उठा और फिर देखते ही देखते उसने पूरे शहर को अपने कब्जे में कर लिया.
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पूरा शहर पागल 


और मौत का यह गुबार हवा के सहारे लोगों के सांसो पर उतरना शुरू हुआ, तब पहली बार लोगों को इसकी मौजूदगी का एहसास हुआ, गहरी नींद में सो रहे लोग अचानक चौककर बैठे गये. और फिर उन्हें महसूस हुआ कि जैसे उनका का दम घुट रहा हो, आंखों में जलन हो रही थी, लगता था उनके यहां आंखों में किसी ने मिर्च झोंक दी हो, एक साथ जब पूरे शहर का दाम घुटने लगे तो जाहिर सी बात है पूरा शहर पागल पड़ जाएगा और बस इसी बदहवासी में लोग घरों से निकलने लगे।

लोगों को सांस लेने में हो रही थी दिक्कत

हर कोई शहर छोड़ कर भाग रहा था मगर कमबख्त हवा भी गुआर का साथ दे रही थी, लिहाजा देखते ही देखते जहर भरा गुबार भोपाल की फिजाओं में घुल गया, अब आप अंदाजा लगाअए कि जब पूरी हवा ही जहरीली हो जाए तो भला उसेसे कोई कैसे मुकाबला कर सकता है, तब तक भोपाल के लोगों को ना ही इस जहरीली हवा का नाम मालूम था और ना ही उससे बचाव का तरीका पता था, पूरा शहर खांस खांस कर उल्टियां कर रहा था सांसों के साथ जहरीली गैस फेफड़ों में फैलती गई और लोग सड़कों पर गिरते गए।

हर तरफ लाश ही लाश

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मौत के गुबार ने हवाओं का दामन थामा और बहते हुए सांसो में समाता चला गया घर खाली हो रहे थे गली चौराहे मोहल्ले, बेहोश और बदहवास लोगों के साथ साथ मुर्दों से पटे जा रहे थे कोई गिरते हुए भाग रहा था, तो कोई भागते हुए गिर रहा था. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर शहर की हवा इतनी जल्लाद कैसे हो गई?
यहां तक कि अस्पताल के डॉक्टरों को भी इस गैस का कोई पता नहीं था. इसलिए लोगों का ईलाज भी सही तरीके से हो पा रहा था। और इससे पहले कि सरकार अस्पताल को कोई मदद दे पाती, लाशों के अंबार लगने शुरू हो गए. धीरे-धीरे यह हालत हो गई कि अस्पताल में लाशें रखने की जगह तक नहीं बची. लिहाजा मरने वालों को खुला आसमान के नीचे छोड़ दिया गया.

कब्रिस्तान फुल और श्मसान घाट भी फुल

लाशें इतनी ज्यादा थी कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर कम पड़ गए लिहाजा हर 5 या 10 मुर्दों में से एक का पोस्टमार्टम करने का फैसला लिया गया. भोपाल के चिता स्मशान ने कभी सोचा नहीं होगा कि 2 गज जमीन भी कम पड़ सकती है और अगले 2 दिन में शहर के शहर के सारे कब्रिस्तान भर चुके थे श्मशान में चिता के लिए लकड़ियां खत्म हो गई थी. लाशों की लाइनें इतनी लंबी थी. किसी के पास सोचने तक का वक्त नहीं था. की जिदंगी के इस आखिरी सफर के वक्त मौलाना या पंडित है कि नहीं. मुर्दे ने नया कफन पहना है. या नही.

साथ ही इस हवा के गुबार ने केवल इंसानों को ही नहीं मारा बल्कि जानवरों को भी इस हवा ने अपनी चपेट में पूरी तरह ले लिया। आपको बता दें कि उस कारखाने में कीड़े मकोड़ों के लिए जहर तैयार किया जाता था. कारखाने के मालिक और सरकार को अच्छी तरह मालूम था किया लापरवाही की जरा सी गुंजाइश नहीं है.

लापरवाही के वजह से हुई थी घटना

शुरुआती दौर में इस फैक्ट्री का रखरखाव ठीक ठाक चल रहा था. और फिर कुछ दिनों बाद कंपनी ने अपने बजट को घटाकर और अनुभवी कर्मचारियों को हटाकर नए अनुभवहीन कर्मचारियों को भर्ती कर लिया और नतीजा जल्द ही सामने आ गया.
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3 दिसंबर 1984 को रात 12:00 बजे के आसपास एमआईसी यानी मिथाइल आइसो सॉनाइट गैस के टैंक नंबर 610 में पानी भर गया और इससे हुए रिएक्शन के बाद टैंक का तापमान तेजी से बढ़ने लगा. इससे पहले मौके पर मौजूद लोग हालात को काबू में कर पाते 40 टन मिथाइल आइसोसॉनाइड गैस टैंक नंबर 610 फट गया.

और फिर जहरीली गैस के गुवार ने आसपास के रिहायशी इलाकों में तेजी से फैलने लगा और इस जहरीले कहर ने लगभग अभी तक 30000 लोगों को अपने गाल पर समा चुकी है और तकरीबन 200000 लोग अभी भी विकलांग या अपाहिज होकर जिंदा है.

गुनहगार को मिली सिर्फ चार दिनों बाद रिहाई

एक पूरे शहर को कब्रिस्तान और इसमें श्मसान बनाने के लिए किसे जिम्मेदार माना गया. उसका नाम वॉरेन एंडरसन था. हादसे के फौरन बाद एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन सिस्टम का मज़ाक तो देखिए. कितने लोगों की मौत के जिम्मेदार सक्स और तीन-तीन पीढ़ी को अपाहिज बना देने वाले गुनाहगार को सिर्फ और सिर्फ दिनों के अंदर यानी दिसंबर 1984 को रिहा कर दिया गया।
रिहाई मिलते ही एंडरसन फौरन अपने घर अमेरिका लौट गया और फिर कभी लौट कर नहीं आया हां इसी साल अक्टूबर उसके घर से खबर जरूर आई खबर एंडरसन के मौत की. फिर उस कंपनी ने 1984 में मुआवजे के तौर पर गैस पीड़ितों को 715 करोड़ देने का वादा किया. मुआवजे की कुल रकम को मारे गए तब 3000 लोगों के रिश्तेदारों और करीब करीब 500000 पीड़ितों बांटा जाना था अमेरिकी कंपनी ने यह रकम भारत सरकार हवाले कर दी. और अपनी जिम्मेदारी से हमेशा हमेशा के लिए आजाद हो गई .यानी भोपाल की इस घटना की कुल कीमत लगाई गई महज 715 करोड़ रुपए.

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