भारत में जिले का नाम बदलने की क्या प्रक्रिया है और इसमें कितना खर्च आता है
नाम में क्या रखा है यह डायलॉग, आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा. दरअसल यह डायलॉग इंग्लिश लिखो शेक्सपियर के नाटक रोमियो एंड जूलियट का है. लेकिन लगता है कि भारत के नेताओं और निवासियों को यह बहुत ही पसंद आया है.तभी तो मुंबई को मुंबई त्रिवेंद्रम को तिरुअनंतपुरम कोलकाता को कोलकाता मद्रास को चेन्नई ऐसे तमाम ही नाम है. जिन्हे प्रदेश सरकारों ने नाम बदला हो और अभी हाल ही में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने का फैसला उत्तर प्रदेश की सरकार ने लिया है.
ऐसा नहीं है कि योगी सरकार से पहले किसी नेता ने ऐसा नहीं किया था. भारत में उससे पहले कई शहर अस्पताल कॉलेज सड़कों और चौराहों के नाम बदले दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार ने 8 जिलों के नाम कैसे बदलते हुए जिनका नाम करण मायावती ने कुछ साल पहले ही किया था जैसे हापुड़ का पंचशील नगर या अमेठी का छत्रपति शाहूजी महाराज नगर.
ध्यान रहे कि जब भी कभी नामों को बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है तो सरकारी खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है यह प्रदेश में स्थित सभी बैंकों रेलवे स्टेशन ट्रेनों थाना बसों कथावस्तु स्कूल कालेजों को अपनी स्टेशनरी वह बोर्ड में लिखे पते पर जिला का नाम बदलना पड़ता है और इनमें से तो बहुत से संस्थानों को अपनी वेबसाइट का नाम भी बदलना पड़ता है
आइए आप जानते हैं कि किसी जिले का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है
किसी भी जिले का नाम बदलने की अपील उस जिले की जनता या जिले के जनप्रतिनिधियों के द्वारा की जाती है तो इस संबंध में एक प्रस्ताव राज्य विधानसभा के पास कर के राज्यपाल को भेजा जाता है या इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि किसी भी जिले या संस्थान का नाम बदलने की यह पहले प्रदेश कैबिनेट की मंजूरी होती है. राज्यपाल नाम बदलने की अधिसूचना को गृह मंत्रालय को भेजता है. गृह मंत्रालय से एस्पेक्ट या रिजेक्ट कर सकता है यदि मंजूरी मिल जाती है. तो राज सरकार जिले के नाम बदलने की अधिसूचना जारी करती है. यह शासन एक गजट प्रकाशित करता है. इसकी एक कॉपी सरकारी डाक से संबंधित जिले के डीएम को भेजी जाती है. कहां पर मिलने के बाद डीएम नए नाम की सूचना अपने अधीन सभी विभागों के विभागाध्यक्ष को पत्र लिखकर देते हैं1 जिले में 70 से 90 तक सरकारी डिपार्टमेंट होते हैं सूचना मिलते ही इन सभी विभागों के चालू दस्तावेजों में नाम बदलने का काम शुरू हो जाता है. सभी सरकारी बोर्डों पर नया नाम लिखवाया जाता है. सरकारी गैर सरकारी संस्थानों को अपने साइन बोर्ड बदलवाने पढ़ते हैं. ऐसा नहीं है कि जिस जिले का नाम बदला जाता है. केवल वहीं पर स्टेशनरी मोहरों और साइन बोर्ड इत्यादि के नाम बदलने जाते हैं बल्कि पूरे देश में व्यापक पैमाने पर बदलाव किए जाते हैं.
जिले का नाम बदलने के खर्च के बारे में जानते हैं
नाम बदलने के खर्च का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है केवल अनुमानित राशि बताई जाती है क्योंकि किन-किन चीजों पर नाम बदले जाएंगे इस बारे में कोई डाटा उपलब्ध नहीं है लेकिन अमान के तौर पर यह कहा जा सकता है कि केंद्र से लेकर प्रदेश के खजाने के साथ-साथ सरकारी व गैर सरकारी क्षेत्रों के उपक्रमों आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता हैसारांश के तौर पर यह कह सकते हैं कि नाम बदलने से ज्यादा फायदे नजर नहीं आती बल्कि इन लोगों की कीमती का कमाई की बर्बादी ही हो जाती है इसके अलावा विदेशों में भी नए नाम को पहचान बनाने में बहुत समय लग जाता है यह बात जैसे शहरों का नाम बदला जाता है तो देश को नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि इलाहाबाद का संगम मेला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें