भारतीय संविधान ने लोगों को
कुछ अधिकार दिए हैं तो उनके लिए कुछ कर्तव्य भी बनाये हैं. जब कुछ लोग अन्य लोगों
के अधिकारों को छीनने का प्रयास करते हैं तो उनके लिए संविधान में दंड का प्रावधान
भी किया गया है. ये दंड मृत्यु दंड से लेकर आजीवन कारावास या कुछ वर्षों की सजा के
रूप में हो सकते हैं. इस लेख में हम भारत के राष्ट्रपति द्वारा फांसी या मृत्यु
दंड की सजा को माफ़ करने की प्रक्रिया के बारे में बताएँगे.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने के शक्ति प्रदान की गयी है जो कि निन्मलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी पाए गये हैं;
1. किसी जघन्य अपराध के लिए
मृत्यु दंड
2. सैन्य न्यायालय द्वारा
दिया गया दंड
3. किसी अपराध के लिए दिया
गया दंड
सांसद निधि योजना में सांसद को कितना फंड मिलता है? mp ko kitna rupya milta hai
राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित क्षमादान शक्तियां हैं;
1. सजा को क्षमा करना: इस
प्रावधान के द्वारा राष्ट्रपति, आरोपी को आरोपों से मुक्त
कर देता है.
2. सजा को कम करना: इसमें
राष्ट्रपति सजा को कम कर देता है जैसे;मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल देता है.
3. दंड की अवधि का परिहार (Remission)
करना: इसमें राष्ट्रपति दंड की प्रकृति में
परिवर्तन किये बिना उसकी अवधि को कम कर देता है. जैसे 5 वर्ष के कठोर कारावास को 2 वर्ष का कर देना.
4. सजा पर विराम लगाना:
राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह मूल सजा को किन्हीं विशेष परिस्तिथियों में जैसे,
शारीरिक अपंगता, गर्भावस्था की अवस्था इत्यादि में रोक सकता है.
5. राष्ट्रपति, किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) का प्रतिलंबन (Suspension)
कर सकता है ताकि व्यक्ति क्षमा याचना के लिए
अपील कर सके.
भारत में मृत्युदंड देने की क्या प्रक्रिया है.
भारत में दुर्लभतम मामलों
(जैसे छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार और हत्या, किसी महिला या पुरुष की अमानवीय तरीके से हत्या) में मौत की
सज़ा दी जाती है. सेशन कोर्ट (सत्र न्यायालय) में जब मुक़दमे की सुनवाई होती है तो
सेशन जज को फ़ैसले में यह लिखना पड़ता है कि मामले को दुर्लभतम (रेयरेस्ट ऑफ़ द
रेयर) क्यों माना जा रहा है.
सेशन जज द्वारा दी गयी
मृत्युदंड की सज़ा तब तक वैध नहीं है जब तक कि इसे हाई कोर्ट की मंजूरी ना मिल
जाये.
भारतीय संविधान के
अंतर्गत यह व्यवस्था है कि किसी भी अपराधी के साथ भी किसी दशा में अन्याय नहीं
होना चाहिए. इसी कारण यदि किसी व्यक्ति को निचली अदालत ने सजा सुनाई है तो उसे यह
अधिकार दिया गया है कि वह व्यक्ति ऊपरी कोर्ट में जा सकता है अर्थात वह राज्य के
हाईकोर्ट में अपील कर सकता है और अगर वंहा भी उसे लगता है कि उसके साथ न्याय नहीं
हुआ है तो वह सर्वोच्च न्यायालय यानि कि सुप्रीम कोर्ट में भी शरण ले सकता है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने
जो सजा सुनाई है वह फाइनल ही रहेगी. यदि सुप्रीम कोर्ट ने किसी को मृत्यु दंड की
सजा दी है या निचली अदालत की सजा को बरक़रार रखा है तो फिर सजा में सिर्फ
राष्ट्रपति ही परिवर्तन कर सकता है.
आइये अब जानते हैं कि राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है;
जब किसी भी मामले में
किसी अपराधी को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलती है और उसकी फांसी की सजा
बरक़रार रहती है या ऐसे कोई मामले जिसमें खुद सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को फांसी की
सजा दी हो तो वह व्यक्ति सीधे राष्ट्रपति के दफ्तर अपनी याचिका लिखित में भेज सकता
है.
राष्ट्रपति के पास दया
याचिका दाखिल करने का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में है.
अपराधी अपने राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकता है. हालाँकि
राज्यपाल को प्राप्त होने वाली याचिकाएं सीधे गृह मंत्रालय को भेज दी जाती है.
यहाँ पर यह ध्यान रहे कि राज्यपाल, किसी व्यक्ति की
मृत्युदंड की सजा को माफ़ नहीं कर सकता है जबकि राष्ट्रपति ऐसा कर सकता है. अपराधी
अपनी याचिकाएं अपने वकील या परिवारजन के जरिये भी भेज सकते है.
सांसद निधि योजना में सांसद को कितना फंड मिलता है? mp ko kitna rupya milta hai
उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का विभिन्न मामलों में अध्ययन कर निम्न सिद्धांत बनाये हैं;
1. दया की याचिका करने वाले
व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है.
2. राष्ट्रपति साक्ष्य का
पुनः अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है
3. राष्ट्रपति इस शक्ति का
प्रयोग मंत्रिमंडल के परामर्श से ही करेगा.
4. यदि राष्ट्रपति को लगता
है कि अपराधी की सामाजिक परिस्थिति इस प्रकार की है कि उसके परिवार को उसकी बहुत
जरूरत है या किसी अन्य मानवीय ग्राउंड पर राष्ट्रपति सजा को कम कर सकता है,
फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल सकता है या
सजा के रूप को बदल सकता है.
5. राष्ट्रपति को अपनी शक्ति
का प्रयोग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी भी निर्देश का पालन करना जरूरी नहीं
है और राष्ट्रपति के इस निर्णय की कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है.
6. जब क्षमा दान की पूर्व
याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो तो दूसरी याचिका दायर नहीं की जा सकती है.
भारत में अब तक 14 राष्ट्रपति चुने गये हैं और सबने अपने अपने
हिसाब से याचिकाओं का निपटारा किया है. भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा
पाटिल ने सबसे अधिक दया याचिकाएं स्वीकार की थी. उन्होंने कुल 30 फांसियां माफ़ करने का रिकॉर्ड बनाया था. देश
में सबसे अधिक 44 दया याचिकाएं ख़ारिज करने
का रिकॉर्ड पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण (1987 से 1992) के नाम है. आर वेंकटरमण
के बाद सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने वाले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हैं
जिन्होंने 28 दया याचिकाएं ख़ारिज की
थीं.
सांसद निधि योजना में सांसद को कितना फंड मिलता है? mp ko kitna rupya milta hai
उम्मीद है कि ऊपर दिए गए
लेख के आधार पर आप यह समझ गए होंगे कि किसी व्यक्ति को सजा किस प्रकार सुनाई जाती
है और वह सजा के खिलाफ किस प्रकार राष्ट्रपति के समक्ष अपील कर सकता है और
राष्ट्रपति उस अपराधी की अपील पर किस तरह फैसला लेता है.
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